Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 340
________________ ( ३२० ) सवव जब कि यह मनुष्य जन्म मुश्किलसे योला हे तो क्यों प्रयन्त करके धर्म नही करते मैरे प्यारे भाइयों-यह अक्सर बार बार मीलनेका नही है यदि यह वख्त चुक गयेतो फिर चौरासीमें फीरते २ न मालुम ईस भवमें कब आना मीलेगा, ____ नमाद, आलस्यादिको छोडकर दृढ चित्तसे देवगुरु और धर्मका आराधन करो, वस इतनी वात ईस सज्जनके दास और दुर्जनके मित्रकी याद रखना-इति ॥

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