Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 328
________________ ( ३०८ ) स्वदया उसे कहते हैं कि कपायादि परिणामोंसे जो अपनी आत्मा कर्मासे भार अत है सो न करे, जब अपने स्वयंकों ये ज्ञात हो जावेगा कि मैंने अपने आन्याको आत्म पनसे मलीन होते हुवे वश कर स्वदयाकी है तो अवश्य पर दयाकी तर्फ खयाल होवेगा और जिस सहनशीलतासे अपनोमें स्वयं अपनी आत्माको फंदमें नहीं फंसने दिया तैसे दूसरे जीवोंकोभी करनेको उपदेश देंगे. बस तो जब अन्य पुरुषोकों उपदेश देकर उसके आत्माका बचाव करावेंगे तो वह पर दया कही जावेगी. द्रव्य दया उसको कहते हैं कि चाहे अंतरंग परिणाम न भी हो मगर किसी जीवको आफतमें फसत मारे जाते वगैरः हालतमें देखकर उसकी रक्षा करना. ___ भावदया उसे कहते हैं कि चाहे वो किसी जीवको छुड़ानेको समर्थ हो वा नही, मगर उस प्राणीको दुःखी देखकर मनमें कोमल परिणामोंसे उसके छुड़ानेके भावला कर यथाशक्ति प्रयास करे. हे प्रियवरो ? इसका विवेचन तो वड़ा भारी है मगर समय अधिक न होनेसे कह नही सक्ता. __ यह जैन धर्म खास सर्वज्ञ कथित स्याद्वाद मयि नय निक्षेपो तथा प्रमाणो करके सिद्ध हुवा है. वास्ते यथावत् देखा जाये तो इसमे संशय जैसा मौका ही नही आता, हां

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