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(३०९) अल्पत्ता कदाग्रही पुरपको तो वह मार्ग मिलना मुश्किल होगा मशल मशहूर है कि " पीलियेके रोग वाला जव वस्तु ओंको पीली ही देखता है तो विचारा प्रथक ? वयान करके निश्चय करनेको समर्थ हो ही कैसे सक्ता है " गरज कि कडाग्रहीको मिथ्यात्वरूप पोलियेका रोग ऐसा जबरदस्त लगा हुवा है अर्हत भापित उज्वल धर्मरूप धरल वस्तुभी उसको मिथ्यात्वरूप दिग्वती है मगर हा उसमें ज्यादेतर उसके दुप्फर्मोकी प्रबलता है.
शिष्यवर्ग-हे कृपानाथ | कृपाया मिति मात्र स्वरूप स्थाद्वाद व नय निकाभी फरमाचे, कारण कि यह विपय गहन होनेसे वार २ मुननेकी आवश्यक्ता होती है
मनि-हे धर्मप्रेमीयों ' तुम एक चित्तसे श्रवण करना में कहता हु मगर था, उस विषयको कथन करने के पेम्नर यह कह देना टीक समझता हु कि यह विपय अत्यन्त गहन है मोर पर्ण तोरमे चर्चनेको टाईमभी बहुत चाहिये सरर उपर पूछे दुवे विपयोंके केवल मात्र शहार्य छ । विशेषार्य कह मगा ज्यादे नहीं
पिप्यरर्ग-जगी आपकी इन्द्रा
मूरि-म्यादाटका अर्थ इस प्रकार होता है व्याया " स्पा स्थगित सर्व दर्शन समन सद्भुन यस्त्व शानामिय