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रादि अक्षरोंका आलंबन लेना ही होगा. हां अलबत्ता केवल ज्ञानी हो जावे तो उसे प्रतिमाकी जरूरत भी नही रहती.
हे भाई! जैसे काम विकारवाली तस्वीरको देखकर कामी लोग विकारको प्राप्त हो जाते हैं तैसे ही धर्मप्रेमी पुरुष प्रभुप्रतिमा के दर्शन करके निरागीपनकी हालतको प्राप्त हो जाते हैं.
यज्ञ - हे कृपानाथ ! इस शंकाशील हृदयमें कई शंकाएं उत्पन्न हो रही हैं. अब इस वख्त मुझे प्रश्न पैदा होता है कि कोई भी विधवा स्त्री अपने पतिकी फोटो अपने सामने रख कर नित्य प्रति कहा करे कि हे पति ! मुझसे विषयसुख भोग तो क्या वो भोग सक्ता है.
सूरि-प्रिय यज्ञदत्तजी ! तुमारा यह प्रश्न अज्ञानता से भरा हुवा है, भला तुमही ख्याल करो कि हम तो पहिले ही कह चुके कि हमारा ईश्वर कुछभी नहीं करता. खेर तुम यह तो मानते हो न कि नाम तो ईश्वरका लेना चाहिये ?
यज्ञ - जीहां,
मूरि- अच्छा तो सोचो कि वही विधवा स्त्री यदि केवल अपने पतिका नाम रटन करे तो क्या वह उसकी ईच्छा पूर्ण कर सक्ता है ? कदापी नही ! तो बस सिद्ध हुवा कि जो नामके अन्दर गुण मानने वाले हैं उनको तो अवश्य स्थापना
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