Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 315
________________ (२९५) पु-हे गुरुवर्य ! साकार और निराकार देवका स्वरूप कृपा करके फरमा? सरि-हे महानुभावा! साकार ईश्वर अरिहत भगवानकों कहते हैं, वे प्रभु अष्ट महामातिहार्य, चौतीस अतिशय और पैतीस गुण युक्तवाणी उरके सहित होते हैं. उन प्रभुमें मुख्य चारह गुण पाये जाते हैं वि-मूरीश्वरजी। यदि आप कृपा फरमाकर बारह गुण तथा चौतीश अतिशयोंका परणन फरेंगे तो घडा उपकार समयुगा मूरि-भाई। इसमें उपारको क्या बात है हमने तो इसही लिये सयम लिया है, मुनो, प्रथम यारह गुण बताताहु. अष्टम महामातिहार्य तथा ४ अतिार ऐमे मिलकर निम्न लिखित तौरपर १२ गुण हो १ अगफ्टस, • पुप्पष्टि, ३ दिव्य शनि, ४ चामरयुग ५ वर्णसिंहासन, ६ मामडल, ७ दुदुभि८ छत्रप,शाना. निय, इसके ममावसे रेलरोकारको अपनो हयेगकी तरह देखते है ____१० पचनातिशय, इसके प्रभावसे उनकी याणी पारद पाए अपनी भाषामें समान लेने है

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