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( १३६ ) और बहोत वेदना होने लगी. तथापि आप नहीं घबडाये और सभीको धैर्य देतेरहे. कई डाक्टरो-वैद्योका इलाज करने पर वेदना वेशक आराम होगई किन्तु हड्डी फिर पीछे स्थानपर न आनेके कारण चलना फिरना बंध होगया था, वह वसाही रक्षा " वृद्ध क्यके कारण रक्त कमजोर होजानेसें पग शक्ति नहीं पकडता इससे यह हड्डी ऐसीधी रहेगी और चलना ईफरना होना दुसवार है " बडे २ विद्वान डाक्टरोका यह अभिप्राय होनेसे उपाय करना बंधकरदिया. तीनमासके पश्चात् भूलियेसे खायगामको लेकर आये. चलना फिरना बंध होजानेके कारण शेष कालमें विचरना बंध करादिया गया. सं. १९६५ में आकोलेके संघकी विनंतिसे अपने बड़े शिष्यके पास रेल्वेद्वारा थोडेदिनोके लिये आकोले पधारे, आपके प्रभावसे आकोलेके जैनावकोंने एक जैनपाठशाला स्थापन की है वह आजतक बरावर चलरही है, वहांसे थोडे दिनके पश्चात् लौटकर पीछे खामगामकोही पधारगये. तदनंतर आपका यह दृढ निश्चय होचुकाथा कि, अब हमारा आयु थोडा शेष रहा है अब हम कहींभी नही फिरेंगे और आत्मध्यानमें विशेष लीन रहेंगे, आपके स्वभावके बारेमें हमको एक काव्यका स्मरण हुआ, वह यहहैन ब्रूते परदूषणं परगुणं वक्त्यल्पमप्यन्वहम् ।