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(१६७ ) ८ फर्नियात खराव खर्च० देखादेखी सोतसे हुताशनि ( होली ) आदि धर्म
विरुद्ध पर्व तथा आपरण वगैर
ऐसे दुष्ट रिवाजोंसे, अपनी जैन कोमकी सामाजिक, रिथति बहोत शोधनीयहे ऐसा कहनेमें कदापि असत्य नही है. __ अपनी गुनीति, सदाचार, धन वगैर वीरे २ नष्ट होता जाता
है और अवनतिके घोर अन्धकारम अपन पडते है ऐसे हानिमारक रिवानाको नाद करनेका अपनी कोन्फ्रेन्स ६-६वर्षोंसे ठहराव पास करती है, और उससे कुछ सुपारेकी भाशा पैदा हुई है पर अभितक सभ्य जेनरधुभो कृपालु निटिश राज्यके इन्साफी जगलके नीचे इस आर्यावर्त्तअपन लोग विद्या
पीके चरण सेवन करने लगे हैं इससे विद्या रहती है, सत्यासत्य तथा सारासार मालुम होता है, विद्याके अभारमें इस समय भनकालकी जपेभा पनी स्थिति होत पिगडी हुई गाटम होती है, विद्वान आचार्य और साधु जो पुर्वकालमें धे पैसे आज नहीं है ? इससे ऐसा हुआ कि लोगोकी नित्य प्रति समय रटनी चली और उससे अपनेमे अनेक कुरिवाज जारी होगये कि जिनकी शास्त्रोंमे साफ मनाहै ऐसा होना विग्रामा अभार कहा जावे नहीं तो क्या, कारण कि विया जो है सो मनुष्यको उत्तमोउत्तम गुण देती है पर अविद्या तो