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( २०२ ) गति लेजाने वाला यह एक मन है इस लिये शाखमें वयान है कि मनका विश्वास नहीं करना, मनक विश्वाससे दुःख उत्पन्न होता है जैसे विश्वाससे जालमें आया हुआ मच्छ निवृत्त हो नहीं सकता इसी तरह मनका विश्वास कर कुविकल्प जालॉमें आया हुआ प्राणी निवृत्त होनेमें अशक्त होता है.
आपको मालूम होगा कि, देवपूजा, अशुभक्ति, सुकृत्य और नित्यानुष्टान आदि करते वख्त मन दूर देशामें मुसाफरी कर आता है और मुसाफरी भी ऐसी जबरदस्त करता है कि एक मिनीटमें क्या सेकेन्डमें तमाम हिन्दुस्तान आदि सुल्कॉम घूम आता है, जब अपने मनको स्थिर कर दो घड़ी के लिये सामायिकादि क्रियामें प्रवृत्त होते हैं उस वख्तका हाल जरा दीर्घ द्रष्टीसे विस्तार कर विचार करो कि प्रथम शुद्ध स्थलमे स्वच्छ आसन ऊपर पवित्र मुनिराजकी समक्ष दो घड़ी स्थिर रहनेका नियम लेनेपर भी यह पापी मन वशमें नहीं आता.
और लेखक अनुभवसे लिखता है कि पडिकमणादि क्रिया करते वख्त जो कृत्य करनेका व सनझनेका और पश्चाताप करनेका है उसे भूल कर घरके धंधोसे जा लगता है. हे परमात्मा ? पडिकमणादि अवस्था. चौराशी लक्ष योनि व यढार पाप स्थान, अभ्युठीयो, आयरिय उवञ्जाये, अहाजेमु
और वंदित्तु आदिका सारांश और रहस्य समझनेका खास कृतव्य होने पर भी मन इधर उधर भगता फिरता है. और