Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 289
________________ ( २७१ ) पासमें जो हो उसेभी खोकर निर्धनी होजाते हैं, बहुतेरे सौ अथवा दोसौ वर्ष पर्यत जीनेकी इच्छा करते हैं, पर अचिन्त्य समय उन्हें मौत घर दवाती है, मनुष्य हजारों पदार्थ मिलाने का प्रयत्न करने हैं परन्तु उनमसे बहुत ही थोडे प्राप्त होते हैं, इत्यादि सारी बातोंके निर्णयसे यही सिद्ध होता है कि अशुद्धता और अपनी अज्ञानता ही परतनताका कारण है कि अपन तत्र नहीं है अपन थोडे जानकार है इसलिये परतन, और वह, सब जानने वाले सर्वज्ञ होनेसे स्वतन होना चाहिये । अपन परतत्र होोसे दुखी है, और वह सतत होनेके कारण अत्यन्त सुखी होना चाहिये । अपन परतर होनेसे अज्ञानी है, और यह स्वतन होनेसे सम्पूर्ण नानके भडार होना चाहिये। अपन परतत होनसे जन्म मरन करते है और वह स्वतन होनेसे अजर अमर होना चाहिये। अपन परतत होनेसे परिडिन्न मर्यादा वाले ई-अर्थात् एक जगह है तो दूसरी जगद्दकी नहीं जान सक्ते और वह स्वतन होनेसे सर्वत्र व्यापक होना चाहिये। अपन परतन होनेसे एक काल में है तो दूसरे फारम नहीं, और वह स्वतन होनेसे भूत, वर्तमान और भविष्यत् सय साल्में होना चाहिये । जिस प्रकार अधकार है तो प्रमश पडता है, मैलापन है तो स्वच्छता होती है, वैसेही अपन परतत है तो फिर कोई स्वतन होनाही चाहिये । अपन दु ग्वी और अशक्त है तो कोई मुवी और सर्व शक्ति

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