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(२८५) करते हैं उसके सारासारका योग्य विचार रखकर जहां कहीं उनकी कृतिमें कोई दोप आ गया हो तो उसे सुधारकर उस कार्यकी यथार्थ उन्नति करते चले आये हों ? सैकडों
और हजारोका तो क्या कहना पर लाखोंमेंभी ऐसे थोडे बहुतही मिलने कठिन है । जिस समय इस भारतवर्षके प्रत्येक भक्ति करनेवालेका इश्वरके साथ सचा सम्बध था उस समय इसका सब देशोंमें शिरोमणि गिना जाना सर्वथा सभनीय जान पडता है. और आज अपनेमेसे सत्यताका इस प्रकार अभाव होनेसेही यदि इस देशकी यह दशा हो तो
आश्चर्यही क्या है। ___अपनेमेंसे कइ लोग तो ईश्वर माप्तिके साधनहीको ईश्वर मानते चले है, कितनेक भलतेही पदार्यको ईश्वर कहते है । कोई • तो ईचरके साध जैसा ठीक जानते है वैसाभी कर नही देखते है । ऐसेभी बहुतेरे लोग है जो फेवल लोक-निन्दाके डरसे, अथवा व्यवहार रूपसे बतलानेके लिये ईश्वर सम्बन्धी यातोंको जैसे बने तैसे मानते हैं । इस विपयकी कई पाते बहुतही प्राचीन कालसे प्रचलित है,
और बडेही कालान्तरके कारण किसीभी प्रणालीके स्वरूपमें किसी अगमें तोभी, फेर बदल होनाना स्वाभाविकही है। धर्मविरोधियोंहीने नहीं पर अपर्नेमसेभी पई स्वार्थी लोगोने, उनके थोडसे हिनके लिये अथवा किसी पक्ष विपको समर्य