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( २७२ ) मान होनाही चाहिये । वह स्वतंत्र वस्तु कोई अन्य नहीं है परन्तु वही है जिसे शास्त्र " ईश्वर" कहता है । वह अविनाशी पुरुष, वह सर्व व्यापी तत्व कोई अन्य नहीं है परन्तु वही परमेश्वर है जिसे हजारों योगी और साधु महात्माओने अनुभवसे जानकर निर्णय किया है ।
यदि कोई कहे कि अपन परतंत्र और दुःखी हैं परन्तु राजा तो ऐसे नहीं हैं, तब फिर स्वतंत्र और सुखी व्यक्ति राजाको समझनेकी अपेक्षा ईश्वरको क्यों समझना चाहिये ? थोड़े विचार करनेसे स्पष्ट जान पड़ेगा कि साधारण मनुप्यकी अपेक्षा राजा किसी विशेष वातमें कुछ स्वतंत्र और सुखी है, परन्तु जो वह ऐसी इच्छा करे कि मैं सदा जवान ही, वना रहुं, तो भी वुढा हो जाता है । वह अपनी स्त्री, पुत्र आदि किसीकाभी मरण नहीं चाहता है तो भी ऐसी घटनाएं होती ही हैं । ये सब बातें विचार पुर्वक देखी जाय तो यही मालुम होगा कि राजा तकभी परतंत्र और दुःखी हैं; क्यों कि पुर्णज्ञानी नहीं हैं अशुद्ध है इस लिये स्वतंत्र और सुखका निधि केवल परमात्माको ही कहना योग्य है जो सर्वोपरि है। ___ अपने स्वतःकी स्थिति जगत्का स्वरूप अपने पूर्वमें हो गये उन हजारों बुद्धिमान पुरुषोंके वचन देखनसे और योगियों तथा भक्त जनोका अनुभव देखनेसे ईश्वरके होनेका