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( २३४ ) वह प्रायः नष्ठ होगइ और इस रीतिसें ब्राह्मण धर्मको अथवा हिन्दुधर्मको जैनधर्मन अहिंसा धर्म बताया है, यदि जैन धर्म न होता तो आज 'अहिंसा परमो धर्मः की' पताका संसारमें खड़ी नहिं रह सक्ती.
इसके अतिरिक्तभी अनेक दृष्टान्त उपस्थित है कइ अग्रेजों नेभी समय २ पर इस परम पवित्र धर्मपर अपने २ आशयको प्रकट कर अपनी बुद्धिका परिचय दिया है उन सवका वर्णन करना स्थान संकोचसे अनुचित है.
___ महाशय ! उपरोक्त वाक्योंसें आपका जैन धर्मका महत्व विदित होगया होगा, जिन सज्जनोको विशेष हाल सरलता पुर्वक समबनेकी इच्छा होवे जैनतत्वादर्श तत्वनिर्णयमासादादि ग्रंथोंसे मालुम करसक्ते हैं ॥ शम् ॥
!। प्रथम खंड समाप्त ।।
जैन शब्दकी व्याख्या.
द्वितीय खण्ड. स्याद्वादो वर्त्तते यस्मिन् पक्षपातो न विद्यते । नास्त्यन्य पीडनम् किंचित् जैन धर्म स उच्चते ॥