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( २५४ ) अछी तरहसे होना चाहिये. ये पुस्तकें अनुभवी बड़े व्यापारियों की संमतीसें बड़ी २ व्यापार संबंधी डिरेक्टरीयोंसें शोधकर उपयोगी और प्रचलित व्यापारोका वर्णन पूर्ण रीतसे होना चाहिये.
ऐसी पुस्तकोंकी शिक्षासें अवश्य उम्मेद है कि विद्यार्थीयोका व्यापारके कामों में साहस और उत्साह बढेगा और कुशलतासे व्यापार चला सकेगें.
प्र० धार्मिक विपयकी पाठमाला कैसी होनी चाहिये ?
उ० धार्मिक विपयकी पाठमालाओंमें प्रथम और द्वितीय भागमें तो केवल नीति संबंधि छोटे २ पाठ अथवा आचार विचार संबंधी सामान्य शिक्षा चैत्यवंदन, सामायकविधि, हेतु अर्थ युक्त जीव पदार्थकी सामान्य समझ, जैनधर्म संबंधी सामान्य समझ इत्यादि छोटी वयके वालकोंको सरल पड़े ऐसे उपयोगी पाठ.
तृतीय चतुर्थ और पांचवी पाठमालाओमें निम्न लिखित विषय तो अवश्य आने चाहिये और वे इस रीतिसें होने चाहिये कि जैसे तीसरे भागमें सामान्य स्वरुपही या उसी विषयका चतुर्थ भागमे विशेष विवेचन और पंचममें उसमेंसे निकलते हुए वे तर्क वितर्कों के समाधान और उसका अनुभव सिद्ध होना चाहिये.