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( २०४ ) करो, ध्यान करो, आश्रव रोको, इंद्रीय दमन करो, मौनव्रत स्त्रीकारो, आसन स्थिर रहो, ध्यानारूढ रहो, गुफामें बैठो या हिमालय पवर्त पर जाओ, जनसमूहके मव्यमे रहो या जंगलके बीचमें जाओ, निवृत्ति स्थलमे जागोया मत्ति स्थलमै रहो सगर जहांतक मन वश न होगा सर्व अष्ट क्रिया निप्फल है. जहांतक स्थिर चित्तसे शाम नियमानुसार नहीं चलोगे
और इर्पा निंदा राग द्वेशमें अहोनिश मग्न रहोगे वहांतक सर्व क्रिया अप्रमाणिक है वास्ते हे वीरनंदनो! मनको वश रख. नेके लिये पूर्वाचार्याक कर्तव्यको स्मरण कियाकगे. एकदा श्रीआनंदघननी महाराजने अपने मनको वश रखने के लिये , प्रार्थनाकी है और संगीतमें गा कर फरमाया है कि,
राग अलच्या देलागल. जिया तोहे किस विध समझाऊं। मना तोहे किस विध समझाऊं ॥ हाथी होय तो पकड़ मंगाउं, जंजीर पांव नखाऊं। कर असवारी मावन हो वैठे, अंकुश दे समझाऊ॥१॥ मना तोहे किस विध समज्ञाऊं। घोड़ा होय तो पकड़ मंगाउं, करड़ी वाग देरा ॥ कर असवारी शहरमें फेलं, चाबुक दे समझा। मना तोहे किस विध समझाऊं
॥२॥ सोना होय तो सोहगी मंगाउं, करड़ा ताप देराऊं।