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( १८४ ) . ज्ञात है-तेज मिजाजवाले, घड़ी २ में गरम होनेवाले, उकल
ते लोहीयाले मनुष्यों की काया कैसी विना ताकतकी होती है वो पाठको को समझानेकी कोई आवश्यकता नहीं स्वयंही समझ सकते हैं. वैद्यक शास्त्र कहता है कि-मनको हदसे ज्यादा परिश्रम देनेसे तनकी शक्ति घटती है, पाचन शक्ति न्यून होती जाती है, काम करनेका उत्साह रहता नही ज्ञानतंतु निर्बल हो जाते हैं, क्षय रोग उत्पन्न होता है और आखिरको अकाल मृत्यु होती है. तब कुच्छ कार्य होता नही. शरीर क्षीण होजाता है तब बुद्धि घटतो है, स्मरणशक्ति मंद हो जाती है ! ___ शरीरके रोगके उपाय सहल मिल सक्ते हैं परन्तु मनके रोगके उपाय मिलने कठिन हैं. वियोगके लिये बहोत स्वी पुरुष मा वाप लड़के इत्यादि दुःखी होते हैं परन्तु लगातार शोक करनेसे रोने कूटनेसे कई व्याधियां पैदा होती हैं और उसका परिनाम भयंकर होता है ! हमेशाः रुदन ( शोक ) कर
नेसे दिल बिगड़ जाता है, घरका कार्य नहीं सूझाता, शरीर ___ क्षीण होजाताहै, कोईका मुंह नहीं देखते, बाल बच्चोंको सम्भा
ला नहीं जाता, अंतको शरीर और दिल क्षीण होनेसे मृत्यु होजाती है।
चित्तायत्तं धातुबद्धं शरीरं ।