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करियापर यह फिर से वारवार आते नहीं, ऐसी कहावत है। इससे ऐसा प्रसग आये तो घरवार और घरकी वस्तु वगैर वेचकर जातिको जिमाने के लिये लोग तैयार होते हैं ।
मौसर करना यह एक जातिका हकही होगया है, यदि सरकारके करमेंसे माफ कराना हो तो अर्ज करके माफ करा सकते है, परन्तु इस रिवाजने तो इतनी जड जमादी है कि दुटताही नहीं धिक्कार हे ऐसे रिवाजके । शक्ति हो न हो परन्तु जाति वालोंको तो जिमानाही चाहिये यह कितनी दु खदाई पात है । पतिके मृत्युके बाद उसकी विधवा स्त्रीका घरवार रेचकर नुकता करना यह जुल्म नहीं ? ___ मरनेहारेके परवालोंकी आखोंमेंसे चौधारे आम बहरहे हैं वे दूसरों के सामने ऊचा मुंहकरके देख नहीं सकते ऐसे समप जाति वाले मिष्ठान उडाते है । क्या यह आपको कमशीने लायक याप्त है। जिस जगह लोग शोकम निमग्न हो रहे है वहां जातिवाले इर्प मानते है यह क्या कम अपमान दायक वात है ' परन्तु कितनेक मनुष्य करते है कि हम कर कहने को जाते है कि तुम नुकता करो और यदि नुकता न करे तो जाति उसे सजा थोडीही देता है । यह पात सत्य है कि जाति सजा नहीं देती परन्तु जातिके कितनेक लोग उसे दृष्टात देदे कर गमी दोट कर देते है, तो इमसे ज्यादा क्या
रम । जाति पाळे तो नहीं भटका सकते परन्तु लोगोंके दृष्टांतोंसे नुकता करना पडता है ।