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( १४७ ) मृत्युके बाद नुकता करनेका
हानिकारक रिवाज,
पापाधिस्यपरा रुदि त्यक्त्वा पुण्यविवृद्धिदा । कुरंतु सज्जना मर्व येन मौस्यमवाप्नुयात् ॥११॥ - अर्थ-निसमें पाप विशेष हो ऐसी दुष्ट रुटियो निकाल पर, निमसे गुग्प (मोक्ष) प्राप्त हो ऐसी पुण्यको पढानेवाली महिरा सर्व सज्जनगनो प्रचार करो
आधुनिक समयमें फिननेक प्रचलित हानिशरस रिवान दमि निगसे अपनी जन कामकी मानीन माहोजलानी शिल. गुर नष्ट होगई है, सामानिक स्थिति शोचनीय होती नानी
और मानतिके मीन उगने गे१-उन सिनाम मात्र पाद नुक्ताभी पर है
पद रिन मैन कोपमें परमें मारे, इमा दि. पार परोस वारद पो भागोरस आधार न निपलता, पेसी पारस मोग गर्म करने कि इसका प्रमाण भीभी प्रय मिल्नानी, परन्तु यह मान पिग्द मा मन्या