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( १८५ ) मंगलाचरण
नम श्री वीतरागाय पीत दोपाय चाईते । शोर मताप सतप्त जन समीणनंदवे ।।
तोटक वृत जय आदिजिनेश्वर शोकहरा, जय मांति जिने पर शातिवरा जय नेमिनिनेंद्र कृपानिधि, जय पार्थ जिनेंद्र विग्यात अति जय पीर प्रशु निठारतनी, जस नामथकी जय याय ही गुरु गौतम मगल्यारि स्मरो, सह शोक निवारि अशोक परो. यली जनु मुनिश्पर शील शुचि, गुण गान करोतस घागि रचि फरि मगर ए विविधी निरतु, मृतगेदन रोपन योध रयु.
विवेक सा सौख्यानां मूर शास्त्रे निस्पित । ततो पिरेक मागण वर्तनीय विपक्षणे ॥
अर्थ -सर्व गायोंमें आचार विचार (पिक) यही सपस्त मुगमा मूल पहलाताई वास्ने विचक्षण पुरपोने विवेक मार्गसेही परना चाहिये (जिगसे सर मुग्य मिले.)
अधिक समुत्पना या या सन्नीद म्यः । पारपर परंपा ता परिहार्या पिपरिभि