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( १२७ ) रया करिव ५००० थी, यति-साधु-स्वाध्वी-गणभी करीम सोनी सग्यामेथे, आलारा इसके सर रक्षार्थ बीकानेर नरे शकी ओरसेंभी कई घोडेस्वार दिये गयेथे. दर्शन पूजनके लिये पक देहरासरभी साथमें था देरासर वगेराकी देखरेग्व आपही क तेथे नागोर, फलोधी-पार्श्वनाथ, कापरडी, पाली, वरकाणा, नाडोल नाडोलाद, राणपुर, मुन्छाला महावीर, पचतीथी सिरोही, आतुराज, पालणपुर, सखेश्वर, राधनपुर, वडनगर, वीसनगर, सिद्धपुर-पाटण-(हेमचन्द्राचार्यकी ) प्रभृति स्यले की याना करता हुआ सघ शनुजयकी तराटी शहर पालिताणा पहचा और सहप सबने सिद्धगिरिमी यात्रामरी, और अपनी आत्माओंफों सभीने धन्य माना. एक मास पर्यन्त शहर पालितागर्ने सरका मुकाम रहा, तदनतर वहासे साना होकर शत्रुजय निकटवर्ति पचतीथी और गोगा-नवखडा पा. वनाथजीकी यात्रा करके गिरनार पर्वतसी तराठी शहर जुनागढको सघ पहुचा रेवतगिरि पर्वतपरके मदिर जुहारे और अरिष्ट नेमी भगवान्की यात्रा करके सरनें अपने कृतकृत्य हुवे माना जुनागढसे अमदावादके मदिरोकी यात्रा करके सर वीरानेर लौट आया, इस यात्रामें करीब ६ मास लगे, ऐसा गौरवशाली सघ बीकानेरसे आजतक नहीं निकला, शहर पालीताणामें उक्त सघनें हमारे चरित्र नायक महाराजको गण एव-आचार्य पद-दिया, आपने अभय पद स्वीकार क