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(६०) इस छोटेसे निवन्धमें इन तमामका स्वरूप लिखना अति दुःशक्य है । मगर फिरभी सोलह पदार्थों में एक छल पदार्थकोभी बडे आदरसे स्वीकारा है । इस्का खंडन करना मैं जरुरी समझता हूं। क्योंकि छल करना बिलकुल बुरा है। इस चातको हरएक मतवाले मंजूर करते हैं। ऐसे छलको भी नैयायिक मतके आचार्य गोतमजीने स्वीकृत रखा और अपने शिष्योंकोभी कह दियाकि, अगर छलका तत्व ज्ञान करोगे तो तुम मोक्षके अधिकारी हो जाओगे । ऐसी अकल मंदीपर रोना चाहिये नकि खुश होना । देखिये, छलके तीन भेद बयान किये हैं। वाद्छल, सामान्य छल और उपचारछल । वाक्छल उस्को कहते हैं कि किसी शख्सने साधारण शद्रका प्रयोगकिया (साधारण शद उस्को कहते हैं जिस्के कई अर्थ होसके। ) है । वहाँपर कथन करने वालेके अपेक्षित अर्थको गुम करके रोला पानेके लिये दूसरा अर्थ निकालकर उस कथन कर्त्तापर दवाव डालनेको धमकीकी तोरपर कह देनाकि ऐसा कैसे हो सक्ता है ? मसलन किसीने कहाकि "नवकम्बलोयं माणवकः" मतलब नवीन है कम्बल जिस्के पास ऐसा यह बालक है। यहाँपर "शब्दसे कथन करने वालेने नवीन अर्थका द्योतन कियाथा, इस बातको श्रवण कर्ता अच्छी तरहसे जानता है। मगर फिरभी नव शब्दका अर्थ नौ ऐसी -संख्याको वाच्य रख कर " लुताऽस्य नव कम्बलाः " याने