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(६१) कहा इस्के पास नौ कम्बलें है ? ऐसा दुपण देकर कहता है कि इस्के पास तो एकही कम्पल है। देग्विये, कैसा ज्ञान सिखा रखा है । उस विचारने कब कहा था कि इस्के पास गो कम्बलीय है। उस्ने तो एकही नूतन (नई ) कम्बल है ऐसा कहाथा । उस्का खडन कर डाला इस सरह का झूठा
और खुश्कवादके तत्व ज्ञानसे अगर मोक्षकी प्राप्ति हो तो ऐसी मुक्ति गौतमनीकोही मुबारक हो । इतिवाक छल ।
सभावनासे निस्का अति प्रसगभी होसक्ता है। ऐसे सामान्य वाश्यका किसीने प्रयोग किया है । वहापर उस विचारेकी अपेक्षाको छोडकर उस्के चाक्यका निपेष करनेका नाम सामान्य छल है । जैसे "अहोनुख-ल्वसौ ग्रामणो पियाचरण संपन्न इति ब्राह्मण स्तुति प्रसगे कश्चिद्वदति सभरित ब्राह्मणे विद्याऽचरण सपदिति " मतलब-किसीने ब्रामणकी स्तुतिके प्रसगमें कहाकि ब्राह्मण विद्या और आचरण करके सपन्न होता है । यहाँपरभी हेतु द्वारा झट दृषण दे देगाकि यदि बामणमें विद्या और आचरण रहते हैं तो जिस भूद्रमें ये दो वातें पाई जायगी वो शुद्रमी ब्राह्मणही कह लायगा । इस तरह अति प्रसग दे देना इसका नाम सामान्य छल है। देखिये, दूसरेके अभिमायको गुमकर डालनेकी इद्रनालभी पदपिनी अपने शिष्योंको सिखा गये हैं । इति सामान्य छल।