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(१०७) मतलव-कार्य होनेके सबबसे सुख दुःखोंका कारणभी __ कोइ जरूर होना चाहिये जैसे अकुर कार्य है तो इस्का कारण
बीजभी जरूर होता है इसी तरह मुख दुःख रुप कार्यके कारण पुण्य पापभी जरूर मानने पड़ेंगे।
पाठकगण-जैसे स्वपति भासि अमूर्त ज्ञान रूपी निलादिक वस्तु कारण हैं इसी तरह अरुपी सुखके उमदा उमदा भोजन फूलोंकी मालायें और चन्दन वगेरा कारण माने जावें
और दु खके सर्परिपकटक वगैरा कारण समझे जावें और पुण्य पापको न मान तो क्या हर्ज है ? क्यों कि आपका अनुमान कारणको सिद्ध कर्ता है न कि पुण्य पापको ___ लेखक-विज्ञ वर्ग : आपका यह कहना ठीकनहीं है, क्यों कि एफहि किस्मके भोजन करनेसे एकको आनन्द होता है दुसरेका नहीं होता । जिस भोजनके स्वादसे एक पुरुष प्रसन्न चित्त होकर बार बार उस्का अनुस्मरण की है दुसरेको उसी भोजनसे कोलेग (हैजा) हो जाता है पतलाइये अब इनको कारण कैसे समझ सकते हैं ? इससे वहेतर यही है कि आप पुण्य पापको मान लेवें । यतः शास्त्रमें कहा है और युक्ति इस पातको स्वीकार करती है कि तुल्य साधन के मिलनेपर भी जहापर फलमें विशेषता पाई जाती है वो निर्हेतुक कभी नहीं हो सकती वल्के उस्का कोइ न कोइ सब जरूर होना