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है । अव चेतना लक्षण जीवके पृथ्वी-पाणी-आग-हवा-नवातात-(वनस्पति) द्वीन्द्रिय-( त्रीन्द्रिय-चतुरीन्द्रिय और पञ्चे. न्द्रिय-येह नव भेद हैं इनमें जीवतत्वका विचार विशेपावश्यकी टीकामें बडे विस्तारसे किया है देख लेना इति रोय ( जानने लायक) । चल जीवतत्त्वं । इरके वाद दुसरा अजीवतत्त्व है इस्का लक्षण जीवतत्त्वसे विपरीत होता है याने कर्म भेदोंका नहीं करनेवाला है और नाहिं कर्म फलका भोक्ता वन सक्ता है.
ऐसा जड स्वरूप अजीव तत्त्व होता है. इसतत्त्वकोभी रुपरस गन्ध स्पर्श आदि धर्मोंसे भिन्नाभिन्न समझना चाहिये! इसके धर्मारितकाय-अधर्मास्तिकाय-आकाशास्तिकायकाल और पुद्गलास्तिकाय-येह पांच भेद हैं इनमें धर्मास्तिकाय अरुपी पदार्थ है जो जीव और पुद्गल इनदोनोंकी गतिमें सहायक है. जीव और पुद्गलमें चलनेकी ताकत तो जरूर रहती है मगर विना धर्मास्तिकायके चल नहीं सक्ते ! जैसे मछलीमें ताकत तो जरुर होती है मगर विना जलके नहीं चल सक्ती। यहद्रव्यलोक व्यापी है. थम शब्दके पीछे अस्तिकाय लगा हुआ है इस्का माइना असंख्य प्रदेशोंका सनह समझाता है धर्मास्तिकायके स्कन्ध-देश-और प्रदेश येह तीन भेद माने जाते है स्कंध ऐक समहात्मक पदार्थको कहते हैं देश इस्के छोटे छोटे हिस्ताको कहते हैं और प्रदेश उसे कहते हैं कि