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( १०२) होनेसे होनेसे होता है. जैसे अंधा आदमी रूपको नहीं देख सकता हे ओर बहरा शब्दको नहीं सुन सक्ता है तो इसे क्या रूपव शब्दका अभाव हो जायगा? या अन्धा कहे कि दुनियाकी तमाम चीजें अरूपी हैं तो क्या अरूपी चीजें सिद्ध हो जायंगी कभी नहीं । यही कहा जायगाकि इनकी इंद्रियोंका दोष है. चोथा सवव पदार्थके नहीं दिखलाइ देनेका अनवस्थ होना है जैसे किसी जगहपर एक शख्स तीर बना रहाथा उसवक्त उस्के पास होकर सेना सहित राजा निकल गया मगर विलकूल मालूम नहीं हुआकि मेरे पाससे कौन चला गया ? तो क्या अब इस्के नहीं देखनेसे और देखने वालोंका कथन अन्यथा हो जायगा ? हरगिज नहीं । देखिये एक श्लोकमभी इसीतरहका वयान है. इषुकारनरकश्चिद्राजानंसपरिच्छदम् । नजानाति पुरोयान्तं यथाध्यानसमाचरेत् ॥१॥
पांचमा कारण पदार्थके सूक्ष्म होनेसे पदार्थ नहीं देखा जाता जैसे परमाणु त्रसरेणु निगोद वगैरा नहीं देखे जाते है इससे क्या इनका नास्तित्व स्वीकारा जायगा ? नही ! नहीं ! यही कहना पड़ेगा कि सूक्ष्म होनेसे नजर नहीं आते । छठा सवव आवरण कहा गयाथा सो आवरण नाम ढकणेका है मसलन दीवारके पीछे रइ हुइ वस्तुओंको व्यवधान होनेके स