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(१०३ ) वनसे हम नही देख सक्ते है तो क्या दीवारके पीछे कोई वस्तु नहीं है ? अथवा हम अपने मस्तक कान पीठ आदि शरीरके
आयचों को नहीं देख शक्ते तो क्या हमारे शरीरमें मचकुरा हिस्से नहीं है ? नही क्यों बराबर है मगर इम आवरणसे नही देख सक्ते है इसी ज्ञानावरणसे हमे का वक्त सम्यक्रमफारसे अभ्यसित शास्त्रोंका अर्थभी भूल जाता है। सातवा सवर अभिभर ( एककी प्रबलतासे दुसरेका दवजाना) कहा गयाथा इस्की मिसाल यह है की जैसे दिन के वक्त सूर्यके. प्रयागसे महत हुए ग्रह नक्षत्र तारा वगैरे नही देखे जाते तो क्या इससे वे नष्ट हो गये ऐसा मानेगें कभी नही वे इसी तरह रहते है मगर उनका अभिभव होनेमे नजर नहीं आते है पदार्थके नहीं दिखलाइ टेनेका आठवा सर समानाभिक्षा रहै मसलनमुगोफे देरमें मुगोंकी मुठी व तिलोफे देरमें तिलोंकी मुठी डासरी जाये तो परापर मिलनानसे डाली हुइ मुठी पृथगतया मालम नही पड़ती है इससे हम येह नहीं कह सक्ते कि हमारी डाली हुइ मुठी इसमें नहीं है अथवा पाणिमें लुण डाला जावे तो कुन्छ काल के बाद वो पानीमें बिलकूल नजर नहीं आता तो इससे हम इसमें रिलकल लण नहीं है ऐसा कह सक्ते है ? कभी नहीं, यही कहेगें कि समानाभिहार ( यराघर मिलनाना) से हम नहीं देख सक्त है मगर पदार्थ जरुर होता है देखीये साव्य सूत्रकी सप्तमी फारिकामें भी इसी