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( ७२ ) सांख्य-किस तरहसे होगा जरा दिखलाइये तो सही ।
जैन-देखिये, प्रकृति कर्मको करती है मगर प्रकृतिके साथ कर्मफलका संयोग नहीं होता है और आत्मा कर्मका कर्ता नहीं है, मगर कर्म फलके साथ अभी संबन्ध रखती है। प्रकृतिके लिये किये हुएका नाश यह विकल्प खडा हुआ और आत्माके लिये वगैर कियेका आगमन खडा हुआ । देखिये, आपने एक कर्तृत्त्वके छोडनेसे कितनी तकलीफें उठाइ हैं। क्योंकि यहएक अनादि नियम है कि जो जैसा करता है उस्का फलभी वोही पाता है । मगर आपके मतमें अकर्तृत्त्व रूप उपाधिने इस नियमका सादर स्वीकार नहीं किया जिससे अनेक विद्वानोंने आपकी हांसी उडाई और अनेक उडांयगे। इसलिये अब आपको लाजीम है कि भोक्तृत्त्ववत् कर्तृत्त्वकाभी स्वीकार करें; और महेरवानी करमरा वतलावेंकि आपके और मन्तव्य कौनसे हैं । ताके उनपरभी लेखनी उठाइ जावे ।
सांख्य-हमारे यहां पच्चीस तत्त्व माने हैं सो नीचे दिखाये जाते हैं। आप ध्यान लगाकर पढे ! प्रथम तत्व प्रकृति है। __ अब यहाँपर आपको समझना चाहियेकि प्रकृति किस्को कहते . हैं । देखिये, प्रथम हमारे यहां तीन गुण माने जाते हैं सत्वगुण,
रजोगुण और तमोगुण, इनमेंसे सत्व गुण सुख लक्षण है। __ और रजोगुण दुःख लक्षण है। तथा तमोगुण मोह लक्षण है ।