________________
( ७४ ) द्धिसे "सचाहं सुभगः" " अहं दर्शनीयः" इत्याद्य अभिमानरूपः अर्थात् में बडे सौभाग्य कर्मवाला हूं। मैं अत्यन्त रुपवाला (दर्शनीक ) हूं ऐसा अभिमान होता है उस्को अहंकार कहते हैं, सो पैदा होता है । वाद अहंकारसे नीचेकी सोलह चीजें पैदा होती है ॥ ___चक्षु-श्रोत्र (कान) घाण (नासिका) रसन (जवान ) त्वक् (स्पर्श) ये पांच बुद्धेन्द्रिय पैदा होती है । उनसे ज्ञान पैदा होता है इसलिये इनको ज्ञानेन्द्रिय व बुद्धेन्द्रिय कहते हैं । और वाक्-पाणि (हाथ) पाद (पाँव) अपायुः (गुदा) और-उपस्थ (लिंग व योनि ) ये पांच कर्मेंद्रिय है । क्योंकि इनसे कथन-ग्रहण-विहरण आदि कर्म होते हैं, इसलिये इनको कर्मेंद्रिय कहते हैं। पांच बुद्धि-इंद्रिये और पांच कर्मेंद्रिय ये मिलकर दश हुये ग्यारहवा मन और शब्द-रूप-रस-गंध और स्पर्श ये पांच तन्मात्रा सर्व मिलकर ये सोलह चीजें अहंकारसे पैदा होती हैं । इन सोलहमेंसे पांच तन्मात्रासे पांच भूत पैदा होते हैं। जैसे शब्द तन्मात्रासे आकाश-रूप तन्मात्रासे अग्निः-रस तन्मात्रासे जल-गंधतमात्रासे पृथ्वी-और स्पशे तन्मात्रासे वायुः इस रीत्यानुसार पांच. तन्मात्राओंसे पांच भूत पैदा होते हैं। ___ प्रथमके सोलह पदार्थके साथ इन पांचोका मेलाप करनेसे इक्कीश हुए इनके साथ पूर्वके प्रकृति बुद्धि और अहंकार