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मुक्त करें ! इत्यादि संक्लिष्ट परिणामके चिह्न प्रत्यक्ष तया देखे जाते हैं इसलिये दुसरा विकल्पभी आपके लिये अनुपादेय है.
जैमिनि-जैसे लोहेका गोला भारा होनेकी वजहसे पाणिम इवता है, मगर फिरभी अगर उनके अतीव वारीक पत्रं बनाये जायें तो वे तरते हैं. मारनेके स्वभाववाला विपभी दवाओंके प्रयोगसे अथवा मंत्रसंस्कार करनेसे गुणहेतु होता है. जलानेके स्वभाववाली आगभी सत्यादिके नभादसे प्रतिहत शक्ति होकर जला नहीं सक्तीतरह वेद पंत्रद्वारा किइ हुइ हिंसा पायहेतु नहीं है प्रत्युत (वल्के) धर्महेनु है अतःइससे न करत करना ठीक नहीं ! क्योंकि इरके करनेवाले यानिकोंकी पूजा होती लोकमें प्रत्यक्ष तया देखी जानी है. अगर यहकाम न फरत लायक होता ? तो पूजा कैसे होती ? ।
जैन-आपके तमाम दृष्टान्त विषम हैं इसलिये इसवातके साधक नहीं बन सक्ते ! देखिये ! लोहका गोला विप और अग्नि भावान्तर (परिणामान्तरव पदार्थान्तर ) होकर अपनी मज्जनादि (डुबना वगेरा) क्रियाको छोडते हैं और सलिल तरणादि (पानीमें तैरना वगेरा) क्रियायें करते हैं मगर आपके वैदिक मंत्रोंके संस्कारसे मारे हुए जीवोमे किसी तरहका भावान्तर नहीं देखा जाता!
जैमिनि-क्यों ! नहीं ? वरावर परिणामान्तर मानते हैं !