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(५५) अच्छे कारीगरने उमदासे उमदा रय क्या न बनाया हो य गर एक पैयसे (चक्र) कभी नहीं चल सक्ता । मतलब जैसे स्थके लिये दो चक्र (पैये भी जरूरत है, इसी तरह मोक्ष माप्ति भी इन दोनो निमित्तोंकी जरूरत है । देखिये किसीएक गहन वनम चराचर पदार्थके साथ वनको भस्मसात् करता हुआ अनि इस कदर मजवित हुआकि आसपासके तमाम लोगोंने भयभ्रान्त होकर भागना शुरु किया । उस वक्त उस वनमें एक अपा और एक पगु दा शख्म मौजूद है । उनममे अपा भागतो सक्ता है, मगर देख नहीं सताकि, आगरा जोर फिवरसी तरफ है, ओर मुझे क्सि दिशाका आशय लेना चाहिये ।इसलिये वो गभरा रहा है। इधर पगु साफ तोरपर देख रहा है कि आगका इन दिशाआमं पडा जोर है,
और फलॉ दिशाम हो जाउ तो मै बच सक्ता हु। मगर क्या करे वो विचारा भाग नहीं सक्ता । अब अलग रहनेसे इन दोनोका नाश होता है । लेकिन इन्फाफसे दोनाही पच सक्ते हे । क्योंकि अगर अपा पगुको अपने स्मथ (खभा,पर उठा लेगे और पगु दर्शित मार्गपर चले तो दोनोंही बच सक्ते है। इसी तरहसे ज्ञात रहित क्रिया मानिंद अध पुरुपके है । जो मोक्ष में जाना चाहती है, और उद्यमभी जानेका फरती है, मगर मोक्षका रस्ता नहीं जानती । किया रहित ज्ञान मा