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( ५६ ) निंद पंगुके मोक्षके रास्तेको देख सक्ता है, मगर चल नहीं सक्ता । बस, इससे सावित हुआकि जब चलन खभाव क्रिया और दर्शक ज्ञान दोनों पदार्थ इकठे होंगें तवही मोक्ष दे सकेंगे। इसलिये अकेले ज्ञानसे मुक्तिका मानना दुरुस्त नहीं । प्रथम पदार्थ इन लोगोंने ममाणको माना है। अतः इम कह सक्ते हैं कि ऐसे रद्दीसदी ज्ञानके साथ अगर क्रिया मिलभी जावे तो फिरभी कुछ नहीं बन सकता। क्योंकि सम्यग् वानके साथ सम्यक् प्रकारसे क्रिया की जायगी तवही मोक्ष हाँसिल हो सकेगा अन्यथा नहीं । देखिये, न्याय दर्शनमें प्रमाणका लक्षण नीचे मुजब लिखा है।
__" अर्थोपलब्धिहेतुःप्रमाणं " __ बतलाइये, इस सूत्रमें लिखे हुए हेतु शबसे आप क्या लेते हैं। अगर हेतु शइसे निमित्त कारण ऐसा अर्थ करोगे तो ये बात सब कारकोंमें साधारण रहेगी। जिससे कर्ता कर्म वगैरा सब कारकोंको प्रमाण स्वरूप मानने पडेंगे। अगर हेतु शबसे असाधारण कारण (कारण का अर्थ स्वीकारोगे, तो वैसा ज्ञानही सिद्ध होता है । नकि इद्रियार्थ समिकर्षः । यतः इंद्रिय और पदार्थ इन दोनोंके जड संवन्धको करण माननेसे घृतादिकोंकोभी करण मानना पडेंगे । इसलिये सांव्यवहारिक प्रत्यक्षके ये करण हैं, नकि कारण । यतः