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शरीर रुपी है और नेत्रसे देखा जाता है। नान अरुपी है और नेत्रसे देखा नहीं जाता। इस प्रकारका ज्ञानादि गुणाम वैपरि त्य होनेसे शरीरके गुण नहीं हो सक्ते । ___ जैसे घटरुपी और चाक्षुप (देखनेमें आवे) है तो उस्का गुण ज्ञान नहीं बन सक्ता । इससे साबित हुआ कि अमृत आत्माकाही अमूर्त ज्ञान गुण हो सकता है । जब आत्माकाही गुण ज्ञान सिद्ध हुआ तो इस्के प्रत्यतसे आत्माभी प्रत्यक्ष सिद्ध हो चूका । इसलिये अत्यन्त अप्रत्यक्ष होनेसे आत्म कोइ पदार्थ नहीं है, आपका जो कहना था सो वाल भापित था। क्योंकि अनेक युक्ति द्वारा हम आत्माको प्रत्यक्ष सिद्ध कर चूके हैं ।
नास्तिक-भला प्रत्यक्ष प्रमाणसे तो आपने आत्माको सिद्ध करदिया। मगर अब अनुमानसे तो जग दिखलावे किस तरहसे सिद्ध होता है ?
आरितक-लो अब अनुमानसे देख लेखें । इस्की सिद्धि क. रनेको किनने अनुमान खडे हो जाते हैं यहभी ख्याल रखना। 'अनुमान' प्रयत्नवाले कर अधिष्ठित शरीर जीव वाला है। क्योंकि यह शरीर खाने पीने आने जाने रुप किया तवही करता है। जब भीतरके प्रेरककी इच्छा होती है । अगर भितरके प्रेरककी इच्छा नहो तो कुछभी नहीं कर सक्ता। इससे सिद्ध