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( ३४ ) ज्ञान सुख वगेरः पैदा होते नजर आते हैं, इससे हम इनको कार्य कह सकते हैं । (जो पैदा होने वाली चीज है वो कार्यमही शामिल है,) कार्यका उपादान कारण जरूर होना चाहिये । बिना उपादानके कार्य नहीं बन सक्ता । जैसे विना मृत्तिकाके घट रुप कार्य नहीं बन सत्ता है। इससे ज्ञान सुख वगेरःका उपादान कोई जरूर होना चाहिये । जो उनका उपादान है. वोही हमारा आत्मा है। क्योंकि शरीर तो इनका आश्रयी वन सक्ता है । न कि उपादान | अगर किसीको इस वातमें शक हो तो भूत पीछेकी इबारत देख लेवें। शक नष्ट हो जायगा । यतः हम अनेक , युक्ति प्रयुक्ति द्वारा इसवातको स्पष्ट कर चुके हैं कि ठीक शरीर ज्ञानादिकका कारणं नहीं बन सकता।
नास्तिक-अच्छा, हम इस बातको मंजूर करते हैं कि मापके अनुमान सच्चै हैं। मगर आपने प्रत्यक्ष प्रमाणसे आमाको सिद्ध करते वक्त स्व संदेदन प्रत्यक्ष प्रमाणका स्वरूप बतलाया। इससे देशक अपने आत्माकी पहिचान हो जाएगी। मगर दीगर शख्समें आत्मा है; या नहीं ? बतलाइये ! इस बातकी सिद्ध करनेवाला कोइ प्रमाण है या नहीं ? ___ आस्तिक-क्यों नहो, वैतराग देवके अछूट ज्ञान खजामें किस बातका टोटा है ? जो मागोगे सो मिलेगा। ली