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(३७) आस्तिक-प्रियवर ! जरा मेरी तरफ अपनी तवजह रजु करें । म आपको दुरस्त कर दिखलाता है । देविये । गर्दभशृङ्ग अथवा व यापुत्र नहीं है । मगर इनका निषेध पाया जाता है, इस्का यह सच है कि जैसे हम कहते इकि देवदत्त परम नही है। इससे जतलाया गयामि देवदत्तका सयोग घरके साथ नहीं है। मगर गीचेमे जानेकी वजहसे आरामके साथ है। इसीतरह गर्दभशृग नहीं है। इससे यह मालूम होता है कि ऋगका गधेके साथ समपाय योग नहीं है, किन्तु भैस, गौ पैल बगेर पशुओंके साथ है। इससे सर्वथा शूग निपेध नहीं किया गया। किन्तु सास जगहपर निपेध है । इम लिये हमारा कहना इसी तरहसे सायम रहाकि जो चीज होगी उसीश निषेध किया जायगा। अनलाइये ! अब जीवो किस जगहपर मानने हो जिधर मान लोगे उपरही सिदि कायम रहेगी।
नाम्निम-म रही क्सिी गरससे मिलानो उस्ने मेरेमे पा आप की इ १ गो जवाब दिया "ईश्वरो ऽह " में ई'वर , उस्ने निपेर कियाकि तुम ईश्वर नहीं हो सक्ते हो। यन गरये ' अब जाप माननेके मुतारिफ तो में ईश्वर परापर हो चूमा। क्यामि नापका कहना है । निम्का निषेध किया जाये वो जगर होता है । मलाइये। आप मुझे ईश्वर मानोगे या नहीं?