Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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xivili...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... अंततः यही भावना करती हूँ कि इस कृति के माध्यम से
श्वास-श्वास में ब्रह्मनाद का गुंजन हो,
रोम-रोम में संयम रस का सिंचन हो, संयम क्रियाओं के प्रति अहोभाव वर्धन हो, अन्तस् में जिनवाणी आलोक का प्रकटन हो, महाजन पथ पर भवि जीवों का अनुगमन हो...
जिससे युवा वर्ग में जिन धर्म अनुराग जगे.
समाज में सदाचार के दीप जले, श्रमण साधना को उचित सम्मान मिले,
कर्म श्रृंखला को पूर्ण विराम मिले... जिनवाणी का विस्तार करते हुए अल्पमति के कारण शास्त्र विरुद्ध प्ररूपणा की हो, आचार्यों के गूढार्थ को न समझा हो, अपने मत को रखने में जानते-अजानते जिनवाणी का कटाक्ष किया हो, शब्द संयोजना गूढ़ भावों को समझाने में समर्थ न हो अथवा कुछ भी जिनाज्ञा के विरुद्ध लिखा हो तो उसके लिए त्रिकरण-त्रियोग पूर्वक मिच्छामि दुक्कडम्।