Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
58...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... 13. श्रद्धावान - जिनवचन के प्रति श्रद्धा रखने वाला हो। 14. स्थिर - स्थिरचित्त वाला हो। 15. समुपसम्पन्न - स्वेच्छापूर्वक, सम्पूर्ण भाव से दीक्षा स्वीकार के लिए
आया हो।
उत्सर्गतः इन पन्द्रह गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही दीक्षा के लिए योग्य कहा गया है। आपवादिक दृष्टि से इससे न्यून गुणवाला व्यक्ति भी दीक्षित हो सकता है, किन्तु आचार्य हरिभद्रसूरि के मतानुसार आर्यदेश में जन्मा हुआ अवश्य होना चाहिए, उन्होंने इस गुण पर विशेष बल दिया है।
धर्मसंग्रह में दीक्षार्थी के 16 गुण कहे गये हैं उनमें 'अद्रोही' गुण विशेष है शेष पूर्ववत जानने चाहिए।17 दूसरे, उपर्युक्त गुण उत्सर्ग मार्ग की अपेक्षा या कालहानि के दुष्प्रभावों से बचने की अपेक्षा से जानने चाहिए। ___ परमार्थतः जो तीव्रतम वैराग्य से संयुक्त हो, ऐसा कोई भी साधक दीक्षा का पवित्र पथ अपना सकता है, क्योंकि चाण्डाल कुलोत्पन्न हरिकेशीबल एवं मेतार्य मुनि जैसे पतित व्यक्तियों ने भी दीक्षा ग्रहण कर इस जीवन को सफल बनाया है। ___ व्यवहारभाष्य में एक गणिका द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण करने का वर्णन मिलता है। बौद्ध साहित्य के अनुसार आम्रपाली नाम की गणिका ने तथागत बुद्ध के पावन उपदेश से प्रभावित होकर बौद्ध प्रव्रज्या ग्रहण की थी।
समष्टि रूप में कहा जा सकता है कि यदि वैराग्य प्रबल हो और योग्य गुणों का समन्वय हो, तो प्रत्येक व्यक्ति दीक्षा का अधिकारी बन सकता है। इस सन्दर्भ में दीक्षाप्रदाता के द्वारा सम्यक् परीक्षण किये जाने के बाद ही दीक्षा देनी चाहिए। दीक्षा के लिए अयोग्य कौन ?
जैन धर्म में अठारह प्रकार के पुरुष, बीस प्रकार की स्त्रियाँ और दस प्रकार के नपुंसक ऐसे अड़तालीस व्यक्ति दीक्षा के लिए अयोग्य माने गये हैं। इन अयोग्य व्यक्तियों को श्रमणसंघ में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। निशीथभाष्य एवं प्रवचनसारोद्धार के अनुसार दीक्षा के लिए अयोग्य अधिकारियों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है18