Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 248
________________ 186...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता सत्य बल के माध्यम से विशिष्ट शक्तियों और लब्धियों का भी स्वामी बनता है और वचन सिद्ध पुरुष की कोटि में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार सत्य महाव्रत की उपादेयता विविध दृष्टियों से रही हुई है। सत्य महाव्रत के अपवाद ___विद्वद् मनीषी डॉ. सागरमल जैन ने लिखा है - यद्यपि सत्य-महाव्रत का पालन उत्सर्गतः होता है तथापि जैन आगमों में इसके कुछ अपवाद मिलते हैं। ये अपवाद प्रमुखतया सत्य को अहिंसक बनाये रखने के दृष्टिकोण को लेकर ही है। जैसा कि आचारांगसूत्र में वर्णन आता है कोई भिक्षु मार्ग में जा रहा हो और सामने से कोई शिकारी व्यक्ति आकर उससे पूछे कि- हे मुनि! क्या तुमने किसी मनुष्य अथवा पशु आदि को इधर आते देखा है ? इस स्थिति में यदि मनि प्रश्न की उपेक्षा करके मौन रहता है और मौन रहने का अर्थ-स्वीकृति लगाये जाने की सम्भावना होती हो तो जानता हुआ भी यह कहे कि मैं नहीं जानता।61 यहाँ असत्य भाषण अपवादतः स्वीकार किया गया है। यह बात निशीथचूर्णि में भी वर्णित है।62 आचारांगसूत्र के उक्त सन्दर्भ में हमें यह विशेष ध्यान रखना चाहिए कि साधक प्रथमत: अहिंसा एवं सत्य महाव्रत की रक्षा हेतु मौन में ही रहे, लेकिन इतना आत्मबल न हो कि मौन में रहते हुए अहिंसा और सत्य दोनों की सुरक्षा कर सके तब अपवाद मार्ग का सेवन करे। भगवान महावीर के जीवन के ऐसे अनेक प्रसंग हैं जब उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी मौन रहकर अहिंसा एवं सत्य-महाव्रत की रक्षा की। सामान्य मुनियों के लिए भी यही विधान है कि उस प्रकार की सत्य बात जो किसी का उपघात करने वाली हो, उसे न कहकर साधक यथासम्भव मौन में रहे अन्यथा अपवाद मार्ग का सेवन करे। सत्य महाव्रत की भावनाएँ सत्य महाव्रत को परिपुष्ट करने हेतु निम्नोक्त पाँच भावनाएँ कही गयी हैं63 ___ 1. अनुवीचि भाषण - विवेक पूर्वक बोलना। बिना विचारे बोलने पर असत्य भाषण की सम्भावना रहती है।इससे वैर-बन्धन, आत्म-पीड़ा तथा अन्य जीवों के नाश की सम्भावनाएँ रहती हैं।

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