Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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232... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता
हैं, जिससे व्यक्ति का दिमाग हमेशा गरम रहता है। इससे स्पष्ट है कि आहार को संयमित, सात्त्विक एवं मर्यादित मात्रा में ग्रहण करना आवश्यक है।
आयुर्वेद सिद्धान्त के अनुसार रात्रिभोजन पूर्ण हानिकारक है, क्योंकि भोजन करने के बाद तीन घंटे तक सोना नहीं चाहिये। जबकि रात्रिभोजी तो अक्सर भोजन के पश्चात शीघ्र ही सो जाते हैं, इससे पर्याप्त पानी नहीं पी पाते हैं। सोने से पाचन तन्त्र मंद होने के कारण भोजन पूर्ण रूप से एवं शीघ्र पच नहीं पाता, उसका रस नहीं बन पाता। अतः रात्रिभोजन से अकारण ही पेट की अनेक व्याधियाँ हो सकती हैं। पेट की व्याधि के कारण आँख, कान, नाक, सिर आदि की बीमारियाँ आने में समय नहीं लगता है।
एक बात यह भी है कि सूर्य के प्रकाश में सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि सूर्य का प्रकाश सूक्ष्मजीवों के लिये अवरोधक तत्त्व है। इस दृष्टि से बड़े-बड़े ऑपरेशन हमेशा दिन के समय में ही होते हैं।
समाहारतः शारीरिक एवं चिकित्सक दृष्टि से भी रात्रिभोजन करना महान हानिकारक है।
रात्रि में भोजन पकाने सम्बन्धी दोष
रात्रि में भोजन बनाते समय दीवार आदि के सहारे रहे हुए जीवों की हिंसा होती है और ज्योति के प्रकाश में भी अन्य अनेक जीवों की हिंसा होती है। कभी खाना बनाते समय बिजली चली जाये तो अंधेरे आदि में स्वयं को शारीरिक नुकसान भी हो सकता है । उस स्थिति में हम सरकारी अधिकारियों को जैसे-तैसे भी बोल देते हैं, उससे अठारह पापस्थान सम्बन्धी कई पापों का बंधन होता है।
यह अनुभव सिद्ध है कि विद्युत के प्रकाश में छोटे-छोटे जीव जन्तु बिल्कुल दिखाई नहीं देते हैं, किसी चीज को साफ करके बनाना हो तो अंधेरे के कारण उसमें रहे हुए घुन, छोटे सफेद कीड़े आदि ऐसे ही हमारे पेट को कब्रिस्तान बना लेते हैं जिससे शारीरिक एवं मानसिक कई रोग पैदा होते हैं और धार्मिक दृष्टि से घने कर्मों का बन्धन होता है। इसलिये रात्रि में भोजन भी नहीं बनाना चाहिये।
रात्रि में खाने सम्बन्धी दोष
रात्रिभोजन करना प्रायः सभी दृष्टियों से नुकसानदायी है। हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि सूर्य प्रकाश में और दीपक के प्रकाश में बहुत बड़ा अन्तर है। सूर्य के