Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 318
________________ 256...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता 5. वयट्ठवणमुवट्ठवणा। (क) पंचकल्पभाष्य (ख) पंचाशकवृत्ति-उद्धृत वही, पृ. 911 6. एगविहो पुण सो संजमो त्ति, अज्झत्थ-बाहिरो य दुहा। मण - वयण - काय तिविहो, चउव्विहो चाउजामो उ।। पंच य महव्वयाई, तु पंचहा राइभोयणे छट्ठा। सीलंगसहस्साणि य, आयारस्सप्पवीभागा।। आचारांगनियुक्ति (नियुक्तिपंचक) 313-314 ७. (क) अनुयोगद्वार, संपा. मधुकरमुनि, सू. 472, पृ. 381 (ख) तत्त्वार्थसूत्र, 9/18 (ग) उत्तराध्ययनसूत्र, 28/32-33 8. (क) विशेषावश्यकभाष्य, मल्लधारी- हेमचन्द्राचार्यवृत्ति, गा. 1263-1264 (ख) पंचाशकटीका, 11/3, पृ. 177 9. (क) वही, गा. 1268-69 (ख) पंचाशकटीका, पृ. 177 10. विशेषावश्यकभाष्य, गा. 1270 11. वही, गा. 1273 12. वही, गा. 1277 13. वही, गा. 1279-80 14. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/1/54-55 15. वही, 3/2/163 16. विशेषावश्यकभाष्य, गा. 1257 17. दशवैकालिकसूत्र प्रथमचूला, संपा. मधुकरमुनि, 1-18 18. आवश्यकनियुक्ति, (नियुक्तिसंग्रह) गा. 98-100, 1174 19. पंचवस्तुक, गा. 613-614 20. वही, गा. 615 21. (क) वही, गा. 615 (ख) धर्मसंग्रह, गा. 108 22. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 3/2/186

Loading...

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344