Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text ________________
उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 265
166. योगशास्त्र, 3/60 167. रात्रिभोजन एक वैज्ञानिक दृष्टि, पृ. 13-14 168. हनाभिपद्मसंकोच, चण्डरोचिरपायतः। अतो नक्तं न भोक्तव्यं, सूक्ष्मजीवादनादपि ।
योगशास्त्र, 3/60 169. (क) योगशास्त्र, 3/50-53
(ख) श्रावकाचार सारोद्धार, 2/98-102
(ग) उमास्वामी श्रावकाचार, 321-24 170. श्रुयते ह्यन्यशपथाननादृत्यैव लक्ष्मणः । निशाभोजनशपथं, कारितो वनमालया ।
योगशास्त्र, 3/68 171. अह्नो मुखेऽवसाने च, यो द्वे द्वे घटिके त्यजन् । निशाभोजनदोषज्ञोऽश्नात्यसौ पुण्यभाजनम् ।।
वही, 3/63 172. बुद्धिज्म, टी.वी. राइस डेविस, पृ. 159 173. भिक्षु आगम विषय कोश, भूमिका, पृ. 31 174. समवायांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 25. 175. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, संवरद्वार 176. उत्तराध्ययनसूत्र, 21/12 177. दशवैकालिकसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, चतुर्थ अध्ययन 178. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 3/2/186 179. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 10/17 180. बृहत्कल्पभाष्य, गा. 411 181. निशीथभाष्य, गा. 3754 182. वही, गा. 3764, 3768, 3770 183. वही, गा. 3758 की चूर्णि 184. आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 143 185. पंचवस्तुक, गा. 667 186. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ. 23
Loading... Page Navigation 1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344