Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 257
23. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 10/20 24. व्यवहारभाष्य, अनु. मुनि दुलहराज, गा. 4604-4606 25. पंचवस्तुक, गा. 616-620 26. (क) बृहत्कल्पभाष्य, भा. 1, गा. 412, पृ. 119
(ख) निशीथभाष्य, अमरमुनि, गा. 3764, 3768, 3770
(ग) पंचवस्तुक, गा. 622-623, 633-636 27. मंसंकुरो इव समाणजाइ, रूवंकुरोव लंभाओ। पुढवी विट्ठ मलव, णेवलादओ हुंति सच्चित्ता।
पंचवस्तुक, गा. 645 28. भूमी खय साभाविअ, संभवओ दुटुरो व जलमुत्तं। अहवा मच्छोव्व सभाव, वोमसंभूअ पायाओ।
वही, गा. 646 29. आहाराओ अणलो, विद्धिविगारोवलंभओ जीवो। अपरप्पेरिअ तिरिआणि अमिअ दिग्गमणओ अनिलो।।
वही, गा. 647 30. जम्मजरा जीवण मरण, रोहणाहार दोहलामयओ। रोग तिगिच्छाईहि अ, नारिव्व सचेअणा तरवो।।
वही, गा. 648 31. बेइंदियादओ पुण, पसिद्धया किमि पिपीलि भमराई। कहिऊण तओ पच्छा, वयाइं साहिज्ज विहिणा उ॥
वही, गा. 649 32. दशवैकालिकसूत्र, 4/11 33. वही, 4/11 34. वही, 8/3-13 35. निशीथभाष्य, अमरमुनि, भा. 1, गा. 289 की चूर्णि 36. (क) आचारांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/15/778
(ख) समवायांगसूत्र, 25/1
(ग) प्रवचनसारोद्धार, 72/636 37. पंचवस्तुक, गा. 655
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