Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 313
________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 251 आयंबिल तप करवाया जाना चाहिए। सम्प्रति श्वेताम्बर मूर्तिपूजक-परम्परा में उपवास तप करवाने की परिपाटी प्रचलित है। वासदान की अपेक्षा - उपस्थापित मुनि को बधाने एवं उसके उज्ज्वल जीवन के लिए मंगलमय भावों को दर्शाने हेतु वास या अक्षत में से किसका प्रयोग किया जाना चाहिए ? इस सम्बन्ध में पंचवस्तुक के रचयिता ने कोई सूचन नहीं किया है। तिलकाचार्य सामाचारी212 एवं आचारदिनकर213 में गुरु सहित चतुर्विध संघ के द्वारा वास प्रदान करने का उल्लेख है। सामाचारी प्रकरण214 में भी वासदान का ही उल्लेख किया गया है, किन्तु चतुर्विध संघ द्वारा किससे बधाया जाना चाहिए, इसका कोई वर्णन नहीं है। सुबोधासामाचारी215 में वास-अक्षत दोनों को अभिमन्त्रित करने का निर्देश तो है, किन्तु वास द्वारा जिनबिम्ब का पूजन करने का सूचन किया गया है। साथ ही मुनि आदि के द्वारा अक्षतों से बधाने का वर्णन है। विधिमार्गप्रपा216 के अनुसार वास-अक्षत दोनों से बधाया जाना चाहिए, किन्तु कौन-किससे बधाये? इसका स्पष्ट निर्देश नहीं है। जबकि वर्तमान में साधु-साध्वी वास चूर्ण से और श्रावक-श्राविका अक्षतों से बधाते हैं। मन्त्रदान की अपेक्षा – उपस्थापित शिष्य का दिग्बन्धन करने के पश्चात उसे गुरु परम्परागत मन्त्र प्रदान करना चाहिए। यह सूचन आचारदिनकर में प्राप्त होता है।217 आचार्य वर्धमानसूरि ने लघु दीक्षा एवं बृहद् दीक्षा दोनों में मन्त्र प्रदान करने को आवश्यक माना है और दोनों में एक ही मन्त्र सुनाने का निर्देश किया है। यह सम्प्रदायगत अवधारणा मालूम होती है न कि पूर्वपरम्परागत आचरणा। विधिचरण की अपेक्षा - उपस्थापना काल में मुख्य रूप से कितने चरण निष्पन्न किये जाते हैं, इसका सामाचारी सम्बन्धी ग्रन्थों में सुस्पष्ट विवेचन नहीं है यद्यपि सामान्य रूप से देववन्दन, कायोत्सर्ग, वासनिक्षेप, व्रतारोपण, सप्तखमासमण, अक्षतवर्धापन, व्रतस्थिरीकरण कायोत्सर्ग, दिग्बन्धन, प्रत्याख्यान, ज्येष्ठवन्दन और धर्मव्याख्यान ऐसे कुल ग्यारह चरणों का विवरण क्रम वैभिन्य के साथ उपलब्ध होता है। सामाचारीप्रकरण में नौ चरणों से सम्बन्धित एक गाथा उद्धृत की गयी है। वह इस प्रकार है पदिआइ वास चिई, वय तिअतिअवेला' खमासमणसत्त दिसिबंधो दुविहा', तिहा तव देसण मंडलीसत्ता'

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