Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 189 4. आचार चोर - आचार-सम्पन्न न होते हुए भी स्वयं को आचारवान
बताना। 5. भाव चोर - सूत्र और अर्थ को न जानते हुए भी अभिमानवश जानने
का भाव प्रदर्शित करना। भाव चोरी करने वाला साधक किल्विषिक देव रूप में उत्पन्न होता है। देवत्व का स्वरूप पाकर भी वह यह नहीं जानता है कि 'यह मेरे किस कार्य का फल है'। वहाँ से च्युत होकर मनुष्य गति में गूंगेपन को प्राप्त होता है अथवा नरक या तिर्यञ्च योनि में जाता है जहाँ सत्य की बोधि अत्यन्त दुर्लभ होती है।
चोरी के अन्य प्रकार - कुछ चोरियाँ अप्रत्यक्ष रूप से होती हैं। जैसे किसी के द्वारा अत्यधिक सुन्दर कार्य किया गया हो तो यह कार्य मैंने किया है या किसी कवि, लेखक या वक्ता के भावों को लेकर उसे अपने नाम से लिखना, या शब्दों का हेर-फेर कर उस पर अपना नाम लगाना आदि नाम चोरी है अथवा जिस व्यक्ति ने तप नहीं किया है, किन्तु किसी को उसी के नाम से भ्रम हो गया हो और कोई उसे कहे - धन्य हैं आप! आप सदृश तपस्वी का दर्शन कर मेरा हृदय आनन्द से तरंगित हो रहा है इस प्रकार के प्रशंसात्मक शब्द सुनकर भी जो यह स्पष्टीकरण नहीं करता कि आप जिसके लिए कह रहे हैं, वह मैं नहीं हूँ। वे व्यक्ति दूसरे हैं। इस तरह दूसरे के नाम को छिपाकर यश प्राप्त करने का प्रयास करना यह भी नाम चोरी का एक रूप है।यह चोरी गृहस्थ एवं साधु दोनों के लिए त्याज्य है।
यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि यदि किसी व्यक्ति से कोई वस्तु मांगकर लाये हैं तो वह कार्य पूर्ण होते ही तुरन्त उस व्यक्ति को लौटा देनी चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि जब तक वे माँगने नहीं आयेंगे तब तक तो इसका उपयोग कर लें। यह भी चोरी का एक प्रकार है। ___ आवश्यकता से अधिक वस्तु का संग्रह करना भी एक तरह की चोरी है। क्योंकि एक स्थान पर संगृहीत हो जाने से वह वस्तु जरूरतमन्द व्यक्ति को नहीं मिल पाती है, वह उससे वंचित रह जाता है इसलिए यह चोरी का सूक्ष्म प्रकार है।
जिस व्यक्ति के पास जो शक्तियाँ हैं चाहे वह शक्ति धन की हो या बुद्धि की हो या किसी अन्य प्रकार की हों। जैसे जरूरतमन्दों के लिए धनादि का दान