Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 223
भोजन किया जाये तो वह सुपाच्यकर होता है। साथ ही बलवर्धक और शक्तिकारक भी होता है । इस प्रकार शारीरिक स्वस्थता पूर्वक की गई योगसाधना सिद्धिफलदायिनी होती है।
ध्यान-साधना करने के लिए तन और मन दोनों शांत और स्वस्थ होने चाहिए। रात्रिभोजन का त्याग आमाशय और पाचनतंत्र को हल्का रखता है, जिससे मस्तिष्क भारमुक्त रहता है। जबकि रात्रिभोजन से वायु दोष, अजीर्ण, अपच आदि होने की अधिक संभावना रहती है। फलस्वरूप योग साधना आदि में मन जुड़ना मुश्किल होता है ।
अहिंसा लाभ की दृष्टि से
यदि अहिंसा की दृष्टि से विचार करते हैं तो रात्रिभोजन अनावश्यक जीव हिंसा का कारण प्रतीत होता है। पहला दोष यह है कि अंधकार में भोजन किया ही नहीं जा सकता, उसके लिए दीपक, मोमबत्ती या बिजली का प्रकाश करना ही पड़ता है। उस प्रकाश में स्वयं अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीव आकर्षित होकर आ जाते हैं, जो भोजन में अपने आप गिरते रहते हैं। अनेक जीव तो इतने सूक्ष्म होते हैं तथा उनका रंग भोज्य पदार्थ के रंग का ही होने से पता भी नहीं चलता और वे हमारे खाद्य-पदार्थों में मिलकर अनचाहे ही हमारे पेट में चले जाते हैं, पेट इन जीवों का कब्रिस्तान बन जाता है।
दूसरा दोष यह है कि रात्रिभोजी क्रूर, हिंसक, कठोर एवं निष्ठुर परिणामी हो जाता है। उसके भीतर में जिनवाणी के प्रति रही आस्था एवं श्रद्धा मंद होने लगती है। जो रात्रि भोजी हैं उनके लिये अक्सर रात को भोजन बनता है । रात में गैस चूल्हों में छिपे जन्तु अकारण ही मर जाते हैं। आजकल यह तर्क दिया जाता है कि बिजली के प्रकाश से दिन की तरह प्रकाश हो जाता है, अतः जीव जन्तु आसानी से दिखाई देते हैं। वास्तव में देखा जाये तो अनेक जीव-जन्तु जो दिन में निष्क्रिय रहते हैं वे रात में सक्रिय हो जाते हैं तथा अनेक जीव-जन्तु विद्युत, दीपक आदि के प्रकाश के कारण ही पैदा होते हैं। इस तरह रात को भोजन बनाने एवं करने के कारण अनेक निरपराध जीव काल के ग्रास हो जाते हैं। इस प्रकार रात्रिभोजन करने से स्पष्टतः हिंसा का पाप लगता है।
यह बात प्रमाण सिद्ध है कि मर्यादित काल के बाद खाद्य पदार्थों में अक्सर खाद्य-सामग्री के रंग के ही कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं, उन्हें रात में देखना एवं उनसे रात में बचना बड़ा कठिन होता है। कभी-कभी तो विषैले कीटाणुओं के