Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 227
हल्का, मध्याह्नकाल का आहार पौष्टिक एवं सायंकाल का आहार सात्विक होता है। यह अलग बात है कि व्यक्ति अपनी इच्छापूर्ति के लिए कभी भी कुछ खापी ले, किन्तु वास्तविकता लौकिक व्यवहार के पालन में है । दुनियाँ में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो प्राकृतिक महत्त्व को समझते हैं और दिनभर में एक बार ही भोजन करते हैं। सामान्य रूप से चिड़िया, कबूतर, तोता, कौआ आदि पक्षी संध्या होने तक अपने-अपने घोंसलों में चले जाते हैं। पक्षीगण सूर्यास्त के बाद न तो दाना चुगते हैं, न जल पीते हैं और न रात के समय उड़ते हैं। प्रात: सूर्योदय होने पर ही दाना-पानी चुगने निकलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि दिन में भोजन और रात में विश्राम यही प्रकृति का सहज क्रम है। प्रायः रात्रि में या तो हिंसक पशु अपना शिकार ढूँढने निकलते हैं या फिर आधुनिक वातावरण में रहने वाले शहरी पशु ही रात को खाते हैं। मनुष्य के लिये प्राकृतिक एवं स्वाभाविक नियम यही है कि वह रात्रि में विश्राम करे और दिन में श्रम करे ।
जैन परम्परा में रात्रिभोजन निषेध की जो मान्यता है वह प्रदूषण मुक्ति की दृष्टि से सर्वथा उचित दिखती है। वस्तुतः रात्रिभोजन का सेवन न करने से प्रदूषित आहार शरीर में नहीं पहुँचता और स्वास्थ्य की रक्षा होती है। सूर्य के प्रकाश में जो भोजन पकाया और खाया जाता है, वह जितना प्रदूषण मुक्त एवं स्वास्थ्यवर्धक होता है, उतना रात्रि के अंधकार या कृत्रिम प्रकाश में पकाया गया भोजन नहीं होता। जैन धर्म ने रात्रिभोजन निषेध के माध्यम से पर्यावरण और मानवीय स्वास्थ्य दोनों के संरक्षण का प्रयत्न किया है। दिन में भोजन पकाना और खाना उसे प्रदूषण से मुक्त 'रखना है जबकि रात्रि में एवं कृत्रिम प्रकाश के भोजन में विषाक्त सूक्ष्म प्राणियों के गिरने की संभावना प्रबल होती है तथा देर रात्रि तक किये भोजन का परिपाक भी सम्यक् रूपेण नहीं होता है।
यहाँ विज्ञानसम्मत यह कथन भी महत्त्वपूर्ण है कि सूर्य का प्रकाश वातावरण की शुद्धता में प्रबल निमित्त बनता है। सूर्य प्रकाश के माध्यम से वनस्पति जगत के पेड़-पौधे दिन में श्वासोश्वास के द्वारा आक्सीजन- प्राणवायु छोड़ते हैं और कार्बन-डाइ-आक्साइड - प्राणवायु ग्रहण करते हैं जबकि रात्रि में यह प्रक्रिया व्युत्क्रमपूर्वक होती है अर्थात ये पेड़-पौधे रात्रि में आक्सीजनप्राणवायु को ग्रहण करते हैं और कार्बन-डाइ-आक्साइड - प्राणवायु को बाहर फेंकते हैं। इसमें रहस्य यह है कि आक्सीजनयुक्त हवा शुद्ध होती है तथा कार्बन-डाइ-आक्साइड युक्त हवा अशुद्ध होती है। इससे दिन का वातावरण