Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 263
________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 201 करना तथा अन्तःकरण को निर्मल रखना चाहिए। इन नियमों के अनुपालन से ब्रह्मचर्य व्रत स्थिर और प्रभावी बनता है।98 ब्रह्मचर्य की आराधना का फल प्रश्नव्याकरणसूत्र में ब्रह्मचर्य की आराधना का फल बताते हुए कहा गया है कि यह भविष्य के लिए कल्याणकर्ता है, शुद्ध है, कुटिलता से रहित है, सर्वोत्तम है और दुःखों-पापों को उपशान्त करने वाला है।99 ब्रह्मचर्य महाव्रत की उपादेयता ब्रह्मचर्य जीवन की महान साधना है। यह काम-वासना के विजय की साधना है। मानव एकान्त स्थान में बैठकर उत्तम तपश्चरण कर सकता है, किन्तु अन्तर्मानस में वासना का तूफान उठ जाये तो उस समय अपने आपको नियन्त्रित रख पाना मुश्किल है। जैन धर्म में इसे व्रतराज कहा गया है। इसकी उपादेयता को लेकर यह कहा जा सकता है कि यह एक अपूर्व कला है। इससे शारीरिक सौन्दर्य में निखार आता है। जो ओजस्विता ब्रह्मचर्य से उत्पन्न होती है वह पाउडर आदि कृत्रिम साधनों से नहीं हो सकती है। इन साधनों से सौन्दर्य वृद्धि मानना भ्रमपूर्ण है। ब्रह्मचर्य में अटूट शक्ति है, उस शक्ति का साधक में संचार होता है। वह अन्तरात्मा में एक प्रबल प्रेरणा उबुद्ध करता है। ब्रह्मचर्य ऐसी धधकती हुई आग है जिसमें आत्मा तपकर क्रुन्दन के समान दमकने लगती है। यह ऐसी अद्भुत औषधि है जिसका सेवन करने से अपूर्व बल सम्प्राप्त होता है। ब्रह्मचर्य से तन स्वस्थ रहता है। विचार विशुद्ध बनते हैं। इससे मानव के सर्वाङ्गीण विकास का राजमार्ग खुल जाता है। वासनाएँ अन्तर्मानस में उठने वाली शुद्ध भावनाओं को भस्मसात कर देती हैं, जबकि कामवासना व्यक्ति की प्रगति में अवरोधक पक्ष है। ब्रह्मचर्य की साधना से वीर्य-रक्षण होता है। वीर्य-रक्षण से ज्ञान तन्तु सक्रिय एवं सबल बनते हैं चूंकि वीर्य और मस्तिष्क दोनों एक पदार्थ से निर्मित हैं। दोनों के निर्माता रासायनिक तत्त्व एक-से हैं। शरीरशास्त्रियों के अभिमतानुसार शारीरिक और मानसिक परिश्रम करने से वीर्य के कीटाणु व्यय हो जाते हैं फलत: मस्तिष्कीय और चिन्तन शक्ति दुर्बल हो जाती है। वीर्यनाश का मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इस व्रत के आचरण से अहिंसा धर्म का भी पालन होता है।

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