Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 203 ब्रह्मचर्यव्रत के अपवाद
सामान्यतया ब्रह्मचर्यव्रत का पालन उत्सर्गत: होता है। इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का अपवाद स्वीकार नहीं किया गया है। बृहत्कल्पसूत्रादि में इस सन्दर्भ में जिन अपवादों का उल्लेख पाया जाता है उनका सम्बन्ध मात्र संयमी जीवन की रक्षा के नियमों से है। सामान्य रूप से मुनि के लिए स्त्री-स्पर्श वर्जित है, लेकिन अपवाद रूप में कोई साध्वी नदी में डूब रही हो या उन्मत्त हो गयी हो तो वह पकड़ सकता है।101 इसी प्रकार रात्रि में सर्पदंश की स्थिति हो और अन्य कोई उपचार का मार्ग न हो तो साधु-साध्वी परस्पर में एक-दूसरे की चिकित्सा कर सकते हैं।102 यदि साधु या साध्वी के पांव में कांटा लग जाये और
अन्य किसी भी तरह से निकालने की स्थिति न हो, तो वे परस्पर एक-दूसरे से निकलवा सकते हैं।103 इसी तरह के अन्य विकल्पों में भी साधु या साध्वी संयम की रक्षा हेतु अपवाद मार्ग का सेवन कर सकते हैं। ब्रह्मचर्य महाव्रत की भावनाएँ
ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए सतत जागरुकता अपेक्षित है। एतदर्थ श्रमण को निम्न भावनाओं का पुन: पुन: चिन्तन करना चाहिए और उन नियमों के पालन का पूर्णत: ध्यान रखना चाहिए1. वह स्त्रियों की कामोत्पादक कथा न करे, चूंकि इस प्रकार की कथा करने
से चारित्र का भंग और केवली भाषित धर्म से भ्रष्ट होने की आशंका रहती है। 2. स्त्रियों के मनोहर अंगों का कामपूर्वक अवलोकन न करे। 3. स्त्रियों के साथ की गयी पूर्वकालीन क्रीड़ाओं का स्मरण न करे। 4. आहार- पानी का अति मात्रा में सेवन न करे या सरस-स्निग्ध भोजन का
उपभोग न करे। 5. स्त्री, पशु एवं नपुंसक के आसन एवं शय्या का उपभोग न करे।104 ब्रह्मचर्य महाव्रत के अतिचार
__ जैन परम्परा में ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए नव वाड़ों का विधान है। ये नव वाड़ नगर के परकोटे के समान व्रत का संरक्षण करते हैं। उपर्युक्त व्रत पालन के उपायों में निर्दिष्ट दस समाधिस्थान में इनका अन्तर्भाव हो जाता है। इनका