Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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112...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के.....
ग्रन्थ की अपेक्षा- आचार्य हरिभद्रसूरि के पंचवस्तुक (गा. 125-163) में दीक्षा विधि की चर्चा करते हुए चैत्यवन्दन, रजोहरण अर्पण, तीन बार चोटी ग्रहण, सामायिक ग्रहण के निमित्त कायोत्सर्ग, तीन बार सामायिकव्रत ग्रहण, जिनबिम्ब पर वासदान, वासाभिमन्त्रण, तीन प्रदक्षिणा, प्रवेदन (सात थोभवन्दन), प्रत्याख्यान, धर्मोपदेश आदि कृत्यों का निरूपण किया गया है। वर्तमान परम्परा में भी ये विधि-विधान किये जाते हैं। हमें दीक्षा विधि का प्रारम्भिक एवं प्राचीन स्वरूप पंचवस्तुक में उपलब्ध होता है।
इसके अतिरिक्त पंचवस्तुक में दीक्षा शब्द के पर्याय, दीक्षाप्रदाता गुरु के लक्षण, दीक्षा के लिए आवश्यक योग्यता, दीक्षा की वय, दीक्षा की दुष्करता, स्वजनत्याग विधि, सूत्रप्रदान विधि, दीक्षा विधि न करने से लगने वाले दोष, दीक्षा विधि की सार्थकता के सम्बन्ध में पूर्वपक्ष-उत्तरपक्ष, रजोहरणादि उपकरणों का प्रयोजन, पुण्योदय से गृहवास त्याग, गुणवान गुरु से होने वाले लाभ, शिष्य को हितकारी प्रवृत्ति से न जोड़ने पर लगने वाले दोष ऐसे अनेक बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है जो लगभग अन्य ग्रन्थों में अनुपलब्ध है।
आचार्य हरिभद्रसूरि कृत पंचाशकप्रकरण में जिनदीक्षाविधि नाम से एक स्वतन्त्र प्रकरण है। यदि तुलना की दृष्टि से पंचाशकप्रकरण (गा. 2/1-44) का अवलोकन किया जाए तो इसमें दीक्षा की मूलविधि जैसे चैत्यवन्दन, रजोहरण दान, चोटी ग्रहण, सामायिकव्रत दण्डक उच्चारण, वासनिक्षेपण, प्रदक्षिणा आदि का उल्लेख नहीं है, किन्तु दीक्षा प्रदान करने से पूर्व और पश्चात किये जाने योग्य कार्यों का सुन्दर वर्णन किया गया है, जैसे कि दीक्षा स्थल की शुद्धि किस प्रकार की जाए, दीक्षार्थी समवसरण में किस प्रकार प्रवेश करें, दीक्षार्थी की शुभाशुभ गति जानने के उपाय क्या हैं, दीक्षार्थी की योग्यताअयोग्यता का निर्णय किस प्रकार किया जा सकता है, दीक्षा की योग्यता का निर्णय होने के पश्चात गुरु के द्वारा करने योग्य कार्य, दीक्षित व्यक्ति के करने योग्य कार्य, इत्यादि का सविधि विवेचन है।
इसमें दीक्षा का स्वरूप, दीक्षा ग्रहण करने का समय, दीक्षा का अधिकारी, दीक्षा से होने वाले लाभ आदि की चर्चा भी की गई है। इस तरह दीक्षा पंचाशक में दीक्षा की मूल विधि का स्पष्ट उल्लेख न होकर दीक्षा ग्रहण के पूर्व और पश्चात की आवश्यक विधियों का सम्यक् वर्णन किया गया है।