Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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116...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... जाता है जबकि तपागच्छ आदि शेष परम्पराओं में आठ स्तुतियों पूर्वक यह क्रिया की जाती है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि आचारदिनकर में प्रतिपादित देववन्दन विधि एवं आलापक पाठ तपागच्छ आदि अन्य परम्पराओं में यथावत रूप से प्रचलित हैं यानी उनमें सम्यक्त्वव्रत, बारहव्रत, दीक्षाव्रत, उपस्थापना, पदस्थापना आदि प्रसंगों पर जो देववन्दन क्रिया की जाती है वह आचारदिनकर के अनुसार होती है।
नन्दीश्रवण की अपेक्षा-दीक्षा स्वीकार के दिन दीक्षाग्राही को नन्दी पाठ सुनाना चाहिए या नहीं? इस सम्बन्ध में पंचवस्तुक एवं विधिमार्गप्रपा के सिवाय सुबोधासामाचारी (पृ. 14), सामाचारी (पृ. 21), आचारदिनकर (पृ. 82) आदि में नन्दीपाठ सुनाने का और तनिमित्त वास दान करने का स्पष्ट उल्लेख है। आचारदिनकर में यह भी कहा गया है कि प्राचीन विधि के अनुसार दीक्षा विधि के अन्तर्गत नन्दीसूत्र सुनाने की परम्परा नहीं है यद्यपि आधुनिक काल में नन्दीसूत्र सुनाते हैं। अत: नन्दीसूत्र का लघुपाठ भी दिया गया है। तपागच्छ आदि परम्पराओं में नन्दीपाठ के स्थान पर तीन नमस्कारमन्त्र सनाने की प्रथा है।
तपप्रत्याख्यान की अपेक्षा- दीक्षाग्राही को दीक्षा के दिन कौन सा तप करना चाहिए, इस सम्बन्ध में पंचवस्तुक (गा. 152) का कहना है कि आचार्यों की पूर्व-परम्परा से उस दिन आयंबिल करना चाहिए, किन्तु अनिवार्य नियम नहीं है। इससे यह फलित होता है कि कुछ आचार्य आयंबिल नहीं करवाते हैं, किन्तु इसमें कोई दोष भी नहीं है। प्रचलित पूर्व-परम्परा के अनुसार दीक्षित को आयंबिल करवाया जाना चाहिए। सुबोधासामाचारी (पृ. 14) में नियमत: आयंबिल तप करवाने का निर्देश है तथा आचारदिनकर (पृ. 83) में यथाशक्ति आयंबिल या उपवासादि तप करवाने का सूचन है। तिलकाचार्यकृत सामाचारी, निर्वाणकलिका, विधिमार्गप्रपादि में तप करने के सम्बन्ध में कोई निर्देश नहीं दिया गया है। वर्तमान की सभी परम्पराओं में उपवास तप करने की प्रथा है।
वास-अक्षतदान की अपेक्षा- दीक्षाग्राही के मस्तक पर वासचूर्ण या अक्षत में से किसका निक्षेप किया जाना चाहिए? पंचवस्तुक की टीका (गा. 151) में वासदान का उल्लेख है, अक्षत निक्षेप का कोई विवरण नहीं है। तिलकाचार्यकृत सामाचारी (पृ. 22) और आचारदिनकर (पृ. 83) में वासनिक्षेप