Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 183
4. जीवमिश्र - अधिक जीवित हों और अल्प मृत हों, ऐसे शंख, सीपादि के ढेर को देखकर कहना कि यह जीवों का ढेर है। यह कथन जीवित की अपेक्षा सत्य है और मृत की अपेक्षा असत्य होने से यह मिश्रभाषा है।
5. अजीवमिश्र - शंख, सीपादि के ढेर में बहुत से जीव मरे हुए हों और अल्प जीवित हों तो भी कहना कि यह मृत जीवों का ढेर है।
6. जीवाजीवमिश्र - मरे हुए और जीवित जीवों के ढेर में संख्या का निश्चय न होने पर भी कहना कि इसमें इतने मरे हुए हैं और इतने जीवित हैं। संख्या निश्चित न होने पर भी निश्चित संख्या बताना मृषा है।
7. अनन्तमिश्र - 'मूली' आदि अनन्तकाय हैं, उसके पत्ते अनन्तकाय नहीं हैं, किन्तु दोनों को अनन्तकायिक कहना अनन्तमिश्र है। ___8. अद्धामिश्र - काल के सम्बन्ध में सत्य-असत्य मिश्रित भाषा बोलना, जैसे किसी को उठाने के लिए सूर्योदय न होने पर भी कहना कि 'जल्दी उठो' सूर्योदय हो गया है, गाड़ी को रवाना होने में देर है फिर भी कहना कि 'गाड़ी जाने वाली है' आदि।
9. प्रत्येकमिश्र - प्रत्येक वनस्पति को अनन्तकाय के साथ मिश्रित देखकर 'यह सारा प्रत्येक वनस्पति है' यह बोलना प्रत्येकमिश्र है।
10. अद्धाद्धामिश्र - दिन या रात का एक हिस्सा अद्धाद्धा कहलाता है जैसे प्रथम प्रहर में कोई काम करना हो तो देर न हो जाये, इसलिए कार्यकर्ताओं को कहना कि जल्दी करो मध्याह्न हो गया है।
उपर्युक्त सभी कथन व्यावहारिक भाषा में प्रचलित हैं, किन्तु उनकी सत्यता और असत्यता का एकान्त रूप से निर्धारण नहीं होता है, अतः मिश्र-भाषा कहा गया है अथवा जब कथनों को निश्चित रूप से सत्य या असत्य की कोटि में रखना सम्भव नहीं होता है तो उन्हें सत्य-मृषा कहा जाता है।
(iv) व्यवहारभाषा - यह भाषा न सत्य होती है न असत्य, किन्तु व्यवहारोपयोगी है। इस भाषा को बारह प्रकार से बोला जा सकता है जो इस प्रकार हैं:
1. आमन्त्रणी - 'आप हमारे यहाँ पधारें', 'आप हमारे उत्सव में सम्मिलित हों' - इस प्रकार आमन्त्रण देने वाले कथनों की भाषा आमन्त्रणी है। यह भाषा सत्य-असत्य और मिश्र इन तीनों से विलक्षण मात्र व्यवहारोपयोगी है।