Book Title: Jain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 63 दोष - अवबद्धक व्यक्ति को दीक्षा देने पर उसका मालिक साधु से कलह कर सकता है और पुन: घर ले जा सकता है।
16. भृत्य - जो वेतन लेकर किसी धनिक के घर काम कर रहा हो।
दोष - कर्मचारी को दीक्षा देने पर मुनिजन, मालिक की अप्रीति का कारण बनते हैं। ____ 17. ऋणार्त - जो कर्जदार हो।
दोष - कर्जदार को दीक्षा देने से कर्ज दाता राजा आदि उसे वापस ले जा सकते हैं तथा उसकी और दीक्षा दाता की ताड़ना-तर्जना कर सकते हैं।
18. शैक्षनिस्फेटिका - माता-पिता की आज्ञा के बिना, अपहरण करके दीक्षा देना अयोग्य है।
दोष - बालक को अपहृत कर दीक्षा देने से माता-पिता अचानक पुत्र वियोग के कारण आर्त्तध्यान द्वारा कर्म-बन्धन कर सकते हैं। साधु को अदत्तादान का दोष लगता है। दीक्षा अयोग्य नारी
दीक्षा के अयोग्य पुरुषों के जो अठारह भेद कहे गये हैं वे स्त्रियों के भी समझने चाहिए। उनमें गर्भिणी और बालवत्सा ये दो भेद और मिलाने से दीक्षा के अयोग्य स्त्रियों के कुल बीस भेद होते हैं।24
19. गर्भिणी - जो नारी गर्भवती हो, 20. सबालवत्सा - जिसका बालक स्तन-पान करने वाला हो। दीक्षा अयोग्य नपुंसक
दस प्रकार के नपुंसक दीक्षा अयोग्य बतलाये गये हैं। ये नपुंसक संक्लिष्ट चित्तवाले और नगर दाह के समान तीव्र भोग की लालसा रखने वाले होने से इन्हें दीक्षा देने का निषेध किया गया है। नपुंसक के दस भेद निम्न हैं25
1. पण्डक - इस नपुंसक भेद के छ: प्रकार कहे गये हैं - 1. आकृति से पुरुष होते हुए भी नारी की तरह चेष्टा करने वाला हो। जैसे- भयभीत की तरह चलना, मन्द-गति से चलना, कमर पर हाथ रखना, केश बाँधना, पुरुषों के बीच आशंकित और स्त्रियों के बीच निर्भय रहना आदि। 2. जिसका शब्द, शारीरिक वर्ण, गन्ध और रस स्त्री एवं पुरुष के शब्दादि की अपेक्षा विलक्षण हो। 3. जिसका पुरुष चिह्न अति स्थूल हो। 4. जिसका स्वर स्त्री की तरह कोमल